चलो बुलावा आया है!

"अबे तू है क्या?" इमरान ने नदीम की ओर आँखों से इशारा करते पूछा, "नाम तेरा नदीम, और तू जायेगा वैष्णव देवी यात्रा पे? तेरे घर वाले क्या बोलेंगे?"

नदीम को ऑफिस में नियुक्त हुए अभी  तीन-चार महीने ही हुए थे, और उसके वयक्तित्व का यह पहलू देख कर इमरान, जो उस कंपनी के चार मालिकों में से एक था, काफी विस्मित था, कि कोई मुसलमान कैसे वैष्णव देवी जाने के लिए एक हफ्ते की छुट्टी ले सकता है।


इधर अट्टाहरह वर्षीय नदीम काफी खिसिया सा गया अपने 'सर' को ऐसा कहते हुए देख कर। उसे लगा कि वो अब अपने दोस्तों के साथ माता के दर्शन को नहीं जा सकेगा। फिर भी उसने हिम्मत जुटाई, और बोला, "सर, ऐसा तो क़ुरान में कहीं नहीं लिखा है कि एक मुसलमान घूमने -फिरने नहीं जा सकता। और मैं कहाँ वैष्णव देवी जा रहा हूँ? मैं तो जम्मू कश्मीर घूमने जा रहा हूँ । असल में, मेरे कुछ हिन्दू दोस्त वहाँ जा रहे हैं, तो  इसी बहाने मैं भी जम्मू-कश्मीर घूम आऊंगा, वरना मेरी तो इतनी तनख्वाह भी नही है कि मैं वह अकेले जा सकूँ। सर, जाने दीजिये ना; अगर मैं आख़िरी वक़्त पर इन्कार करता हूँ, तो मेरे दोस्तों को बुरा लगेगा," नदीम ने उस केबिन में विराजमान कंपनी के अन्य मालिकों की ओर देखते हुए अपना पक्ष रखा।

इमरान ने नदीम की आँखों में सच तलाशते हुए, "अगर तुम सच में घूमने ही जा रहे हो, तो ठीक है, जाओ, पर अगले सोमवार को ऑफिस में हाज़िर रहना...समझे?"

"जी", इतना सा जवाब दे कर नदीम उस छोटे से केबिन से बाहर हो लिया।

"तुम लोगों को नहीं मालूम, माता के दर्शन के लिए मैंने झूट बोल कर अपने 'सर' से छुट्टी मांगी है, उम्मीद है  - माँ मुझे माफ़ कर देंगी - जय माता दी !!!", ट्रेन में नदीम अपने दोस्तों को देर से स्टेशन पहुचने की वजह बताता है।

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