कांग्रेस ने प्रियंका को सौंपा नैय्या पार लगाने का बीड़ा
उत्तर प्रदेश। गहरे रंग की साड़ी में, ज़बरदस्त फब्ती हुईं प्रियंका गाँधी कांग्रेस के लिये किसी उम्मीद की किरण की भाँती हैं, जो आजकल अपनी माँ और भाई के लिये अमेठी और रायबरेली में चुनाव प्रचार कर रहीं हैं। इसी वजह से उत्तर प्रदेश के ये दोनो शहर आजकल मीडिया हस्तियों और देश-विदेश के जानेमाने पत्रकारों के अड्डे बने हुए हैं।
बात रायबरेली की है जहाँ प्रियंका अपनी माँ सोनिया गाँधी के लिये चुनाव प्रचार करने के लिये एक जनसभा सम्बोधित करने आयीं हैं। मंच की सीढ़ियां चढ़ते वक़्त जब उन्हें लगता है कि जनता उनको देख नही पा रही है तो वो बैरियर पार कर के एक प्लास्टिक की कुर्सी पर चढ़ते हुए लोगो से स्वयं पूछती हैं, "अब दिख हूँ ना मै सबको?"
इतने आत्मविश्वास के साथ श्रीमती वाड्रा बेहद आसानी से लोगों के दिलों में घर कर जाती हैं। उनका यही आत्मविश्वास उन्हें इंदिरा गांधी का सशक्त अग्रसर साबित करता है। कुछ राजनीती के विशेषज्ञ और ठेठ कांग्रेसी तो उनको इंदिरा का अगला अवतार तक मानते हैं।
अपने सात-आठ मिनट के सम्बोधन मे प्रियंका अपने विरोधियों खासतौर से भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर काफ़ी आक्रामक रवैया अपनाते हुए, उनके आरोपों का भरपूर जवाब देती हैं। साथ ही, वह मोदी व बीजेपी पर नये आरोपो का प्रहार भी करती हैं।
इधर पत्रकारों की बढ़ती हुई उत्सुक्ता को शाँत करने उद्देश्य से वह उनसे कहती हैं कि "मैं आपको भी समय दूंगी, पर अभी जो मुझे कहना है, कह लेने दीजीये।" उनके आत्मविश्वास से यह प्रतीत होता है कि वह कांग्रेस का तुरुप का पत्ता हैं। वह सक्रिय राजनीती से नहीं जुड़ीं हैं, पर उनका बात करने का लहज़ा किसी सक्रिय राजनीतिज्ञ से कुछ कम भी नही है। वह बेहद शानदार तरीक़े से अपने पति रॉबर्ट वाड्रा पर बीजेपी द्वारा लगाये गये आरोपों का उत्तर देतीं हैं, और विपक्षियों को निज़ी हमलों से बचने की सलाह देती हैं।
विपक्षी दल बीजेपी के तामाम नेता भी प्रियँका और उनकी बातों को काफ़ी गंभीरता से ले रहे हैं। अभी तक इस चुनावी जंग में बीजेपी की विजय तय मानी जा रही थी। कांग्रेस के अथाह प्रयासों के बावज़ूद, युवराज राहुल भारत की जनता पर अपना विश्वास बनाने में नाक़ाम रहे। यहाँ तक कि उनका गरीबों और किसानों के घर ठहरना और टेलीविज़न चैनलों पर साक्षात्कार देना भी उनकी छवि न सुधार सका। माँ सोनिया गांधी की यूपीए सरकार से जनता पहले ही काफी त्रस्त है; जनसँख्या का एक बड़ा प्रतिशत उनको देखना और सुनना पसन्द नहीं करता। लगभग सारे (वर्त्तमान सरकार के) वरिष्ठ मंत्रीगण भ्रष्टाचार के आरोपों में या तो लिप्त रहे हैं, या फ़िर उनकी छवि कुछ खास अच्छी नही रही है। इसी वज़ह से कांग्रेस के चुनाव प्रचार का दायित्व राहुल गाँधी को पिछले साल के वार्षिक अधिवेशन मे सौंपा गया था।
उसके बाद से ही राहुल लगातार कांग्रेस की 'उम्मीदो से उतरते' और विपक्षी दलों की 'उम्मीदो पर खरे उतरते' रहे हैं। राहुल कुछ करिश्मा तो नहीं दिखा सके वरन वह अपने क़ुछ विचित्र बयानों के कारण कई बार हँसी का पात्र ज़रूर बने। दूसरी ओर राहुल नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आस पास भी नहीं भटक पा रहे हैं। अपनी रैलियों में भीड़ जुटाना तो दूर, वह तो लोगों को रोक कर भी रख पा रहे हैं। सोनिया गाँधी और कांग्रेस की चिन्ता का सबसे बड़ा विषय यही था।
पिछले आठ-दस दिनों मे प्रियंका ने जिस तरह से चुनाव प्रचार की कमान संभाली हुई है, जिस तरह से वह लोगों से मिल रहीं हैं, उससे यही ज़ाहिर होता है कि यदि कांग्रेस की सरकार फ़िर से बनती है, तो वह सरकार में एक मत्वपूर्ण पद संभाल सकती हैं। जब कुछ पत्रकारों ने उनसे यह पूछा तो वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, "मैं योजना नहीं बनती!" प्रियंका राजनीती से दूर अवश्य हैं, पर उनके एक पारिवारिक मित्र उनके बारे मे कहते हैं, "वह गाँधी परिवार का सबसे मेधावी राजनितीक व्यक्तित्व हैं।" जिस प्रकार उन्होने राहुल को पीछे छोड़ दिया है, और मीडिया और विपक्षी दलों का ध्यान आकर्षित किया है, सँकेत मिलने लगे हैं कि कांग्रेस अब भी क़ाफी मज़बूत है। इस बात से पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी काफी आत्मबल प्राप्त हुआ है। निशंसय, वह ही कांग्रेस का ब्रम्हास्त्र हैं, जिससे पार्टी अपना लक्ष्य २०१४ के आम चुनावों भेदना चाहती है।
(Note: I, Shailendra Verma wrote this article for www.TheIndianRepublic.com, as a sample to prove my Hindi news writing skills. But, unfortunately, they were looking for something much better, so I decided to use it on my website.)
बात रायबरेली की है जहाँ प्रियंका अपनी माँ सोनिया गाँधी के लिये चुनाव प्रचार करने के लिये एक जनसभा सम्बोधित करने आयीं हैं। मंच की सीढ़ियां चढ़ते वक़्त जब उन्हें लगता है कि जनता उनको देख नही पा रही है तो वो बैरियर पार कर के एक प्लास्टिक की कुर्सी पर चढ़ते हुए लोगो से स्वयं पूछती हैं, "अब दिख हूँ ना मै सबको?"
इतने आत्मविश्वास के साथ श्रीमती वाड्रा बेहद आसानी से लोगों के दिलों में घर कर जाती हैं। उनका यही आत्मविश्वास उन्हें इंदिरा गांधी का सशक्त अग्रसर साबित करता है। कुछ राजनीती के विशेषज्ञ और ठेठ कांग्रेसी तो उनको इंदिरा का अगला अवतार तक मानते हैं।
अपने सात-आठ मिनट के सम्बोधन मे प्रियंका अपने विरोधियों खासतौर से भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर काफ़ी आक्रामक रवैया अपनाते हुए, उनके आरोपों का भरपूर जवाब देती हैं। साथ ही, वह मोदी व बीजेपी पर नये आरोपो का प्रहार भी करती हैं।
इधर पत्रकारों की बढ़ती हुई उत्सुक्ता को शाँत करने उद्देश्य से वह उनसे कहती हैं कि "मैं आपको भी समय दूंगी, पर अभी जो मुझे कहना है, कह लेने दीजीये।" उनके आत्मविश्वास से यह प्रतीत होता है कि वह कांग्रेस का तुरुप का पत्ता हैं। वह सक्रिय राजनीती से नहीं जुड़ीं हैं, पर उनका बात करने का लहज़ा किसी सक्रिय राजनीतिज्ञ से कुछ कम भी नही है। वह बेहद शानदार तरीक़े से अपने पति रॉबर्ट वाड्रा पर बीजेपी द्वारा लगाये गये आरोपों का उत्तर देतीं हैं, और विपक्षियों को निज़ी हमलों से बचने की सलाह देती हैं।
विपक्षी दल बीजेपी के तामाम नेता भी प्रियँका और उनकी बातों को काफ़ी गंभीरता से ले रहे हैं। अभी तक इस चुनावी जंग में बीजेपी की विजय तय मानी जा रही थी। कांग्रेस के अथाह प्रयासों के बावज़ूद, युवराज राहुल भारत की जनता पर अपना विश्वास बनाने में नाक़ाम रहे। यहाँ तक कि उनका गरीबों और किसानों के घर ठहरना और टेलीविज़न चैनलों पर साक्षात्कार देना भी उनकी छवि न सुधार सका। माँ सोनिया गांधी की यूपीए सरकार से जनता पहले ही काफी त्रस्त है; जनसँख्या का एक बड़ा प्रतिशत उनको देखना और सुनना पसन्द नहीं करता। लगभग सारे (वर्त्तमान सरकार के) वरिष्ठ मंत्रीगण भ्रष्टाचार के आरोपों में या तो लिप्त रहे हैं, या फ़िर उनकी छवि कुछ खास अच्छी नही रही है। इसी वज़ह से कांग्रेस के चुनाव प्रचार का दायित्व राहुल गाँधी को पिछले साल के वार्षिक अधिवेशन मे सौंपा गया था।
उसके बाद से ही राहुल लगातार कांग्रेस की 'उम्मीदो से उतरते' और विपक्षी दलों की 'उम्मीदो पर खरे उतरते' रहे हैं। राहुल कुछ करिश्मा तो नहीं दिखा सके वरन वह अपने क़ुछ विचित्र बयानों के कारण कई बार हँसी का पात्र ज़रूर बने। दूसरी ओर राहुल नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आस पास भी नहीं भटक पा रहे हैं। अपनी रैलियों में भीड़ जुटाना तो दूर, वह तो लोगों को रोक कर भी रख पा रहे हैं। सोनिया गाँधी और कांग्रेस की चिन्ता का सबसे बड़ा विषय यही था।
पिछले आठ-दस दिनों मे प्रियंका ने जिस तरह से चुनाव प्रचार की कमान संभाली हुई है, जिस तरह से वह लोगों से मिल रहीं हैं, उससे यही ज़ाहिर होता है कि यदि कांग्रेस की सरकार फ़िर से बनती है, तो वह सरकार में एक मत्वपूर्ण पद संभाल सकती हैं। जब कुछ पत्रकारों ने उनसे यह पूछा तो वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, "मैं योजना नहीं बनती!" प्रियंका राजनीती से दूर अवश्य हैं, पर उनके एक पारिवारिक मित्र उनके बारे मे कहते हैं, "वह गाँधी परिवार का सबसे मेधावी राजनितीक व्यक्तित्व हैं।" जिस प्रकार उन्होने राहुल को पीछे छोड़ दिया है, और मीडिया और विपक्षी दलों का ध्यान आकर्षित किया है, सँकेत मिलने लगे हैं कि कांग्रेस अब भी क़ाफी मज़बूत है। इस बात से पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी काफी आत्मबल प्राप्त हुआ है। निशंसय, वह ही कांग्रेस का ब्रम्हास्त्र हैं, जिससे पार्टी अपना लक्ष्य २०१४ के आम चुनावों भेदना चाहती है।
(Note: I, Shailendra Verma wrote this article for www.TheIndianRepublic.com, as a sample to prove my Hindi news writing skills. But, unfortunately, they were looking for something much better, so I decided to use it on my website.)
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