(एकाँकी) इच्छा या भिक्षा
पात्र:
आकाश - ऑफिस का पुराना कर्मचारी
देवा - ऑफिस का चपरासी
अंबर खेर - कंपनी/ऑफिस का मालिक
अपने पुराने ऑफिस में घुसते ही, आकाश किसी सोच मे पड़ जाता है। उसको अपने इस ऑफिस में बिताए हुए दिन याद आने लगते हैं। तभी,
देवा : अरे आकाश सर, नमस्ते.... इतने दिनो बाद! कैसे हैं आप?
आकाश : बस मैं ठीक हूँ..अंबर सर हैं?
देवा (आकाश को रिसेपशन की कुरसियों की ओर इशारा करते हुए) : हाँ, अपने केबिन में हैं..आप बैठिए, मैं उनको बता कर आता हूँ।
करीब दो मिनट बाद
देवा (वापस आकर आकाश को पानी का गिलास देते हुए): जाइए, सर ने आप को अंदर बुलाया है।
केबिन के अंदर
अंबर खेर ( कुटिलता से मुसकुराते हुए) : आकाश! मेरे दोस्त..मुझे उम्मीद थी कि तुम एक दिन ज़रूर आओगे।
आकाश (चेहरे पे मीठी सी मुस्कुराहट के साथ, अंबर के सामने की कुर्सी पर बैठते हुए) : पर...मुझे पूरा विश्वास था कि मैं एक दिन आपके पास ज़रूर जाऊंगा।
अंबर : क्या मतलब?
आकाश ( अपना बैग से समान निकाल कर, अंबर की मेज़ पर रखते हुए) : मेरे पास आपकी कुछ चीज़ें थीं, बस आपको वही लौटने आया हूँ। ये रहा आपका दिया हुआ लैपटाप, कैमरा और इन दोनों के चार्जर, और ये वो 1500 रुपये का चेक।
अंबर (आकाश कि आंखो मे झाँकते हुए) : चलो ये लैपटाप और कैमरा समझ मे आता है..पर ये 1500 रुपये का चेक!! ये किस चीज़ का चेक है?
आकाश (लैपटाप खोल कर ऑन कर देता है और कैमरा हाथ मे लेकर अंबर की फोटो खींचता है और अंबर को दिखाते हुए) : जब मैं यहाँ काम करता था तो मैंने आपके ऑफिस से कुछ समान खरीदा था...पर उसका बिल चुकाने से पहले ही मुझे नौकरी छोडनी पड़ी। परेशान हो गया था यहाँ, सब कुछ अचानक ही सोचा और आपको त्यागपत्र का ईमेल भेज दिया। एक-दो जगह नौकरी के लिए एप्लिकेशन भेजा और फिर तुरंत ही मेरा चयन भी हो गया.....देखिये सर आपका कैमरा ठीक है.....बस इसी वजह से तुरंत आ कर आपको आपका सामान नही दे सका। इतनी देर मे आपको आपका समान वापस करने लिए माफी चाहता हूँ।
अंबर (चेहरे की कुटिलता गायब होते हुए) : देवा, दो चाय ले आना...और ...।
आकाश (बीच मे टोकते हुए) : नही सर, चाय पानी कुछ नही, बस अब मैं निकलूँगा यहाँ से। आपका सामान मेरे ऊपर एक बोझ की तरह था, मैं यहाँ इसी बोझ उतारने आया था, ये मेरी इच्छा थी कि मैं आपको ये सब सामान लौटा दूँ। आपके ऊपर मेरा कितने हज़ार रुपये बकाया हैं, मुझे उससे कोई मतलब नही है, वो आप रख सकते हैं पर मेरे ऊपर आपके 1500 रुपये थे, और ये मेरे लिए एक दुनिया के बोझ के बराबर थे। मैंने कभी ऐसा नही किया...आपके साथ भी नही कर सकता था, आपने काफी ज्ञान दिया है मुझे..मैं सोच लूँगा कि मेरे जो पैसे आपके पास हैं, वो इसी ज्ञान की कीमत है। अब दुबारा आपसे कभी नही मिलना चाहूँगा। आपकी हर एक चीज़, हर एक बात का धन्यवाद।
इतना कह कर आकाश चेहरे पर एक राहत ओढ़े हुए, अंबर को हैरान सा छोड़ कर पहले उसके केबिन से और फिर ऑफिस से बाहर निकाल जाता है।
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